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हिरणी हरि क पुकारे जंगल मऽ / निमाड़ी
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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हिरणी हरि क पुकारे जंगल मऽ
(१) हिरणी रे बन म घुमण लागी,
पार्दी न फन्द लगायो
चौ तरफा से घेरो हो नाख्यो
हिरणी क राम अधारो...
जंगल मऽ...
(२) जब रे पार्दी न फन्द लगायो,
न चल्यो हिरणी का पास
हिरणी बिचारी मन घबराणी
न पार्दी क ढ़सी गयो नाग...
जंगल मऽ...
(३) मन म रे पार्दी ऐसा डरा रे,
न खौब रयो पछताई
चौ तरफा सी आग लगी रे
न हिरणी क ली रे बचाई...
जंगल मऽ...
(४) हिरणी जब निकल हो आई,
आई प्रभू का द्वार
प्रभू जी सी कर अरदास
न हरी जी न लाखी लाज...
जंगल मऽ...
(५) कहत कबीर सुणो भाई साधू,
एक पंथ निरबाणी
जनम-जनम की दासी तुम्हारी
न रवा प्रभू जी की साथ...
जंगल मऽ...