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हिरना-हिरनी / नरेन्द्र शर्मा

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एक था हिरना, एक थी हिरनी!

हिरना था वह प्रेमी पागल,
फिरता था नित जंगल जंगल;
बतलाऊँ हिरनी कैसी थी?
बड़ी खिलाड़िन नटखट चंचल!
दूर दूर फिरती रहती थी,
जैसे फिरती फिरे फिरकनी!
एक था हिरना, एक थी हिरनी!

देखी धरती-सूखी गीली,
ऊँची नीची औ पथरीली,
(छाँह न तिनके की)—रेतीली!
देखे हरे-भरे वन-पर्वत,
देखीं झीलें नीली नीली!

साँझ-सुबह देखीं बनी-ठनी,
देखी सुंदर रात चाँदनी,
अँधियारे में हीर की कनी!
देखा दिन का जलता भाला,
और रात—चंदन कीं टहनी!

देखे कहीं कूजते मोर
(प्रेमी को प्यारा वह शोर!)
नाच रहे सुख से निशि-भोर,
नाच नाच कर पास बुलाते
मेघ रहे अग-जग को बोर!

आई गई और फिर आई,
हिरनी फिर भी हाथ न आई,
हिरने की चकफेरी आई!
मिली न वह सोने की हिरनी,
देशदुनी की ख़ाक छनाई!

आया एक सामने दलदल,
फँसी जहाँ जा हिरनी चंचल
दुख से, प्यारी आँखें छलछल!
हिरना प्यारा, दुख़ का मारा,
दूर पड़ा था गिर मुँह के बल!

थे हिरना के व्याकुल प्राण,
जैसे चुभें व्याध के बाण!
हिरनी कहती-सुनो सुजान!
दूर दूर भागी फिरती थी
तुमको अपना हिरना जान!

बन में आया शेर शिकारी,
भूख बुझाने का अधिकारी,
कहता था—अब मेरी बारी!
देख हिरन-हिरनी की जोड़ी
हँसी क्रूर आँखें हत्यारी!

देख शेर के मन में आया,
मैंने इनको खूब मिलाया;
बहुत मृगी ने खेल खिलाया,
(जिए दूर, मिल गये मौत में)
हिरने ने हिरनी को पाया!

एक था हिरना, एक थी हिरनी!
हिरना था वह प्रेमी पागल,
फिरता था नित जंगल जंगल;
बतलाऊँ हिरनी कैसी थी?
बड़ी खिलाड़िन नटखट चंचल!
दूर दूर फिरती रहती थी,
जैसे फिरती फिरे फिरकनी!
एक था हिरना, एक थी हिरनी!