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हिरना क्यों उदास मन तेरा / जगदीश व्योम

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हिरना !
क्यों उदास मन तेरा
अभी बची
बाकी हरियाली
उजड़ा नहीं बसेरा

कुछ नन्हें
बिरबे मुरझाये
कुछ
वनचर घबराये
सहमे-सहमे तोता-मैना
कुछ भी बोल न पाये
बूढ़ा बरगद
खड़ा अकेला
अवसादों ने घेरा

जंगल में
मंगल होगा
ये सपने गये दिखाये
सिंहासन
मिल गया
भला फिर
वादे कौन निभाये
जाने
कौन घड़ी रुख बदले
फिरे
हवा का फेरा
हिरना
क्यों उदास
मन तेरा