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हिले-डुले कर्णफूल /राम शरण शर्मा 'मुंशी'
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हिले-डुले
कर्णफूल
हिले पात तन के !
दिशि-दिशि
बन्ध गए नयन
गरजे घन मन के !
ठगे खड़े
खग-मृग
सज गए साज वन के !
वासन्ती
विहँसी
खिल गए प्राण जन के !
बन्द कोष
खुले
कण बिखरे यौवन के !
शत-शत गत
वर्ष हुए
दास एक क्षण के !