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हिसाब / चंद्रदेव यादव

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हर रात
दफन हो जाला एक दिन
कि रात एक बड़हर कबुरगाह ह
जेम्में दफन हो जाला
समय क एक टुकड़ा
एक बित्ता उमिर
आ खून क कुछ कतरा
समय के जरीब से
टूट के अलग हो जाले तारीख क एक कड़ी

हर सुबह
काम क बारह घंटा
सवार हो जाला कान्ही पर
रोज संझा के
समय बदरंग कइ देला मजूरन क चेहरा
धीरे-धीरे बीत जाला
एही तरे पूरा एक महिन्ना
तीसवें दिन तक
झर-झर के ओरा जाले तनखाह
महिन्ना के चलनी से l
सोचीला
कइसहूँ बंद कइ देईं चलनी क दू-चार छेद
जेसे बच जाय दू-चार बून तनखाह l

जिनगी अजब तरे क सवल ह
एह गणित में ना गुणा ह ना भाग ह
येह में बस घटाना ह
ईहै त एह गणित क कमाल ह,
समय क धक्का खात खात
महिन्ना के अन्त में
सौ पचास गराम लोहू क कीमत सहेज के
चहुंपीला घर
उठाईला हिसाब वाली कापी
करीला गुणा-भाग
बरतीला हुसियारी, मगर
भाजक क तलवार
काट देले सगरो संख्या
एही से कब्बों न बचेला
हिसाब में से सेस l
मेहरारू पीटैले छाती
' नून–तेल ओरा गइल ह
भरे के ह लइकन क फीस
देवे के ह मकान क किराया l
लुग्गा–झुल्ला के-के कहे
इहाँ त मवस्सरो ना हो पावेले भर पेट रोटी
करम फूटि गइल हमार
येह माटीमिला के हिसाबो ना आवत l'
बड़का लइका
अपने कापी में चुपके से लगावेला हिसाब
आ बोलेला' नाहीं मम्मी,
हिसाब गलत ना, सही ह l'
हमरी समझ में ना आवत
का बोलीं

आँस पी के कहीला
ई घर-गिरस्ती क हिसाब ना ह
बिसवास ना हो त देख ले
ई हमरे जिनगी क बही ह
एम्में सब दर्ज ह
मालिक क साजिस, कफन खसोटी
हमहन के भरोसे
माथे पर लगल अठन्नी भर क टीका
बित्ता भर क चोटी

आँख में बेसरमी, जबान क नरमी
आपन फुटहा करम, दुख-दलिद्दर
देख, धियान से देख
इहाँ खून क कीमत कम
रुपया क कीमत बेसी ह,
ई हमरे-तोहरे समझ से बहरे ह
काहे से कि ई हिसाब खाँटी बिदेसी ह l
हर मजूर अपनी उमिर के
दाल–रोटी में बदल के
अपने परिवार में बाँटेला

हर दिन, हर महिन्ना पाई–पाई क हिसाब
अपने बही में टाँकेला
बुरा मत मान
हमार हिसाब ठेठ देसी ह l
सचाई त ई ह, कि
अदमी अपने जाँगर के बदले
दाल-रोटी ना खाला
अपने खून के निथार के हथेली पर
अदमी रोज-रोज चाटेला l