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हिसाब / दीनदयाल शर्मा
Kavita Kosh से
तुम मत खेलो प्रकृति से
स्वच्छंद विचरण करती
इन मदमस्त हवाओं
के साथ
मत करो खिलवाड़
सच कहता हूँ
कि लहलहाते
इन दरख़्तों की
हत्या कर
तुम बच नहीं पाओगे
शायद तुम नहीं जानते
कि प्रकृति एक न एक दिन
तुमसे हिसाब ज़रूर माँगेगी
फिर तुम कैसे बचा पाओगे
अपने आपको
क्योंकि प्रकृति रिश्वत भी नहीं लेती
इसकी मार पड़ेगी
जिस दिन
तब देखना तू
तेरी आँखों के सामने ही
तू ख़त्म हो जायेगा
कोई आवाज भी नहीं आएगी
और दुनिया की
फिर कोई ताकत
तुमको बचा नहीं पाएगी।