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हींयर / सत्यनारायण स्नेही

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जब भी तपती है गर्मियां में सुबह की धूप
याद आती है मुझे
स्कूल की तरफ जाती पत्थरीली पगडण्डी
पक्के हींयर से लदी कंटीली झाड़िया
करारी धूप में हींयर तोड़ते कांटों की चुभन
मां की हिदायत
हींयर में होते हैं सांप
उनसे बच कर रहना।
हींयर की झाड़ियां टटोलते
जादूई रूमाल लेकर
देखा था मैंने तब पहली बार
आदमी के गले में लिपटा सांप।
सपेरे आज भी ढूंढते हैं सांप
हींयर की बची जड़ों में
मुझे मिल जाते हैं हींयर
बाज़ार में
न कांटे,न सांप का भय
नहीं याद आती हैं मुझे
मां की हिदायतें