हीनता-ग्रन्थि / अन्द्रेय वज़निसेंस्की / वरयाम सिंह
तौलिया लिए हाँफ रहा है बॉक्सर
यों, बचपन में वह डरपोक रहा,
बहुत रह लिया अब नहीं रहेगा
हीनता-ग्रन्थि का वह शिकार ।
घटिया लेखन का भूतपूर्व विजेता
धावा बोल रहा है गोसलितइज़दात पर,
बहुत रह लिया अब और नहीं रहेगा
हीनता-ग्रन्थि का वह शिकार ।
रूसी झीलों की नीलिमा
कराहती है दर्द में इस तरह
जैसे उसकी पुत्रवत जनता ने नहीं
बल्कि उसने किए हों सब अपराध ।
जब नस्ल भी नहीं बचेगी बीहड़ वनों की
और नदियाँ भी सूख जाएँगी आख़िरी बून्द तक
कौन होगा इसके लिए दोषी ? पूश्किन ?
हाँ, कवियों पर ही तो मढ़ दिेए जाते रहे हैं सारे दोष ।
कुदरत का नहीं कोई कसूर
कि नालायक निकला उसका बेटा ।
कवि को ही घोषित किया जाए अपराधी
कि जगाया नहीं उसने लोगों के अन्त:करण को ।
जब काले सागर के बीच
बिछा दिया गया हो सड़कों का जाल,
इस काले दुख का भी
अपराधी होता है कवि ही ।
उसने बुलाई नहीं कोई पंचायत
न ही छेड़ा कोई जिहाद,
बहुत रह लिया, अब नहीं रहेगा
हीनता-ग्रन्थि का वह शिकार।
1980
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह
अब यही कविता रूसी भाषा में पढ़िए
Андрей Вознесенский
Комплекс
Боксер пыхтит в полотенцах,
хоть с детства был трусоват.
Комплекс неполноценности,
хватит комплексовать!
Экс-чемпион по серости
штурмует Гослитиздат —
комплекс неполноценности,
хватит комплексовать!
А в русских озерах ноет
печаль такой синевы,
как будто они виновники
сыновней людской вины.
Когда вымирают пущи
и реки дотла горят,
кто виноватый? Пушкин!
Поэт всегда виноват.
Природа не виновата,
что сын у нее дебил.
Поэт виноват набатно,
что совесть не пробудил.
Когда у Черного моря
на дне асфальт нефтяной,
то этому черному горю
только поэт виной.
Он не созвал на вече,
не крикнул, как в газават:
«Комплекс бесчеловечности,
хватит комплексовать!»
1980