भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हीन है जो कर्म से कर्तव्य से लाचार है / सुनील त्रिपाठी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हीन है जो कर्म से कर्तव्य से लाचार है।
आजकल वह आदमी भी माँगता अधिकार है।

कर रहे हैं लोग जो अपमान निज माँ बाप का।
क्यों उन्हें सन्तान से सम्मान की दरकार है।

मानसिक इतना प्रदूषित हो गया मानव यहाँ।
कर रहा जो बच्चियों के साथ यौनाचार है।

छोड़ दें आतंक की यदि राह भटके नवयुवक।
देश सब कुछ भूल जाने के लिए तैयार है।

लूट ली अस्मत लिखाने जब रपट कजरी गयी।
पूछता अश्लीलता के प्रश्न थानेदार है।

लोभ लालच वासना में लिप्त वह उतना अधिक।
धर्म का जितना बड़ा जो व्यक्ति का ठेकेदार है।