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हील हाइ-हाइ / कालीकान्त झा ‘बूच’
Kavita Kosh से
खुडियौलक कसि - कसि कऽ नीपल करेज केॅ,
धुरियौलक धीपल मनक हाइ वेज केॅ,
कहऽ पड़ल आइ -
नील - नील चप्पल केर हील हाइ - हाइ ।
बेकसूर केश अधगेड़ेॅ सँ काटल छै,
कोन घसबहबाक हाथेॅ छपाटल छै,
अथवा हय दाइ -
ठढ़िया गेन्हारी केॅ चरि गेलै गाइ
पर्स लटकौने कमरच्छा सँ आयलि छै,
नवसिक्खू डानि जकाॅ भूखलि पियासलि छै,
बचबऽ हौ भाइ -
हऽम एक दूइये ओ आखड़ अढ़ाइ
एखनो धरि भौजी केॅ लजवन्ती जगिते छनि,
बूढ़ि भेली भैया लग लाज कते लगिते छनि,
सुनहक ढ़ोढ़ाई -
देखिये कऽ खा लै छी, घिबही मिठाइ