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हुआ फ़रेबी हिरदय / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

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नये वक्त में
रिश्तों का आकाश
मिला है सिकुड़ा-सिमटा

सगे हुए सौतेले – ऐसी हवा बही है
हुआ फ़रेबी हिरदय –कुछ भी नहीं सही है

घर के पुरखे
बजा रहे हैं
टूटा थाल – साथ में चिमटा

शाहों ने हैं प्रजातंत्र का स्वाँग रचाया
बस्ती-बस्ती विश्वहाट का पसरा साया

किसिम-किसिम की
जात-पाँत में
बित्ता-बित्ता शहर है बँटा

राख-हुई पगडंडी पर सूरज पथराया
धुंध-धुएँ का विरुद गया मंदिर में गाया
  
बूझ रहा है
कबिरा बौरा
गलियों में क्यों घिरी है घटा