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हुआ सवेरा / सुरेश विमल
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मिट्ठू शोर मचाता जागो
हुआ सवेरा भैया
जागो, जागे पंछी सारे
जागी गोरी गैया।
तितली उड़ने लगी बाग़ में
फूल लगे हैं खिलने
और हवा में भीगी-भीगी
गंध लगी है घुलने।
मल्लाहों ने खोली तट से
अपनी अपनी नैया!
गुपचुप अम्बर लगा बोलने
किरणों की बोली में
सोना जैसे लगा बरसने
धरती की झोली में।
लगा घूमने बस्ती-बस्ती
फिर जीवन का पहिया।