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हुआ हूँ शहीद / सुदर्शन रत्नाकर

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हुआ हूँ शहीद
चूमा माटी को, फिर
शिथिल हाथों से उठा कर
माथे पर लगाई
अपने आँसू उसमें मिला
सोचता रहा
क्यों होते हैं ये युद्ध
क्यों देशों के अहम आपस में
टकराते हैं, रक्त-रंजित हो
धरती माँ रोती है
लोग अकुलाते हैं।
मैं जिन्हें पीछे छोड़ आया था
मेरे वे रिश्ते
जीते जी मर जाएँगे
सुनेंगे जब, मैं हो गया हूँ शहीद
घूँट आँसुओं के पी रह जाएँगे।
मैं तो चला जाऊँगा एक बार
पर वे मरते रहेंगे बार-बार
रोती हुई छोटी बिटिया, अपने नन्हे हाथों से
पोंछेगी माँ के आँसू
बेटा ख़ामोश हो जाएगा
माँ-बाबा आसमान में ताकेंगे
पर मैं नज़र नहीं आऊँगा।
कैसे बताऊँ उन्हें,
मेरा मरण, सार्थक हुआ है,
मैं निरर्थक नहीं मरा
अपनी माटी, अपनी धरा के लिए
हुआ हूँ शहीद।