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हुई तो बारिश / नंदकिशोर आचार्य
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हाँ, हुई तो बारिश
पर इतनी ही बस
कि धरती याद करने लगी है फिर
उसाँसें भरती हुई
उन कामनाओं को
जिन्हें जाने कब से
अपने सीने में कहीं गहरे दबाये थी वह
-कितनी सोंधी है, प्यार,
कामना की स्मृति भी !
अधगीली रेत से
जो बनाती हो घरौंदा तुम
वह भी तभी तक तो है
जब तक तुम उस को
चूमने दो पाँव अपना-
और तुम भी भला बैठी रहोगी कब तक
सूखती रेत यों ही थपथपाते हुए ?
ठीक है, मैं बिखर भी जाऊँ-
लेकिन अपने सपने का तब
क्या करोगी तुम
जो कि मैं हूँ ?
(1987)