हुई न कोई भूल कि आ कुछ बात करें / रंजना वर्मा
रात गयी अब उन बातों को
मत दे इतना तूल कि आ कुछ बात करें।
हुई न कोई भूल कि आ कुछ बात करें॥।
यह मौसम यह फिजा
तितलियों का उड़ना,
मन से मन के तारों का
अविरल जुड़ना।
खिल खिल हँसते फूल कि आ कुछ बात करें।
बीती बातें भूल कि आ कुछ बात करें॥
समय हाथ से फिसला
तो क्या आयेगा?
मन पर फिर उन्माद
प्यार का छायेगा?
बाहों में ले झूल कि आ कुछ बात करें।
बीती बातें भूल कि आ कुछ बात करें॥
जब जैसा चाहा
सपनों से खेल लिया।
जो भी दिया नियति ने
उसको झेल लिया।
सुख-दुख किया कबूल कि आ कुछ बात करें।
बीती बातें भूल कि आ कुछ बात करें॥
आ कि जुल्फ छितरा कर
जाम उठा साकी।
मन की कोई साध
न जाये बाकी।
टूटे सभी उसूल कि आ कुछ बात करें।
बीती बातें भूल कि आ कुछ बात करें॥
कहीं और यह प्यारा
चमन नहीं होगा।
धरती से अंबर का
मिलन यहीं होगा।
पाटल बने बबूल कि आ कुछ बात करें।
बीती बातें भूल कि आ कुछ बात करें॥