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हुई भूख अति ढीठ / अनामिका सिंह 'अना'
Kavita Kosh से
उम्मीदों के कैसे होंगे,
भारी फिर से पाँव।
धँसी आँख ज़िंदा मुर्दे की,
मिली पेट से पीठ।
आज़ादी भी प्रौढ़ हो चली,
हुई भूख अति ढीठ।
बंजर धरती बनी बिछौना,
सिर सूरज की छाँव॥
कड़वा तेल नहीं शीशी में,
ख़त्म हो गया नून।
दो टिक्कड़ अँतड़ियाँ माँगें,
हुआ है गीला चून।
जा मुंडेर से कागा उड़ जा,
लेकर कर्कश काँव॥
मौला मेरे रख दो काला,
पथवारी ताबीज़।
गाँव की मुनिया आ पहुँची
यौवन की दहलीज़।
पहन मुखौटे फिरें भेड़िये,
कब लग जाए दाँव॥