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हुई शांत पीड़ा कभी तो चुभन से / प्रेम भारद्वाज
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हुई शांत पीड़ा कभी तो चुभन से
कभी वेदना ही बढ़ी है शमन से
कहाँ बाज़ आईं हैं खिलने से कलियाँ
चुने फूल जाते रहे जो चमन से
मेरे मौन पर एक नि:श्वास तो है
न आँसू गिरा जो किसी भी नयन से
शजर खेतियों को ढँके हैं धरा पर
चलो आँधियाँ माँग लाएँ गगन से
अनागत का सँशय व यादों के बंधन
कई बोझ बाँधे गए हैं क़फ़न से
अभी और चलना है रुकने से पहले
अभी पाँव टूटे नहीं हैं थकन
तभी प्रेम ढूँढा कहीं और जाकर
छले जब गए हैं कभी अपनेपन से