भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हुई शाम उनका ख़याल आ गया / मजरूह सुल्तानपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हुई शाम उन का ख़याल आ गया
वही ज़िंदगी का सवाल आ गया

अभी तक तो होंठों पे था तबस्सुम का एक सिलसिला
बहुत शादमां थे हम उनको भुलाकर
अचानक ये क्या हो गया
कि चेहरे पे रंग\-ए\-मलाल आ गया ...

हमें तो यही था गुरूर गम\-ए\-यार है हम से दूर
वही ग़म जिसे हमने किस\-किस जतन से
निकाला था इस दिल से दूर
वो चलकर क़यामात की चाल आ गया ...