भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हुई हवायें गर जहरीली / चन्द्रगत भारती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अगर संतुलन धरा का बिगड़ा,
जिन्दा न रह पाओगे।
हुई हवायें गर जहरीली
घुट घुट कर मर जाओगे।।

बेकार ना जाये बूंद कोई
जल की बरबादी रोको!
जनसंख्या विस्फोट हो रहा,
बढ़ती आबादी रोको!
भूखे प्यासे रहेंगे बच्चे,
फिर कुछ ना कर पाओगे।।

सदा रखो ओजोन सुरक्षित,
परा बैगनी किरने रोको!
हरे पेड़ ना कटने पायें
मिलकर सभी जने रोको!
अगर समन्दर लगेगा जलने,
कैसे भला बुझाओगे ?

हरियाली धरती पर लाओ,
पर्यावरण न हो दूषित
धरती माँ से प्यार करो तुम
मानवता कर दो पोषित!
कहर प्रकृति ने अगर ढा दिया,
मिट्टी मे मिल जाओगे।।