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हुए जनाब में अब तक न मेरे हम गुस्ताख़ / मह लक़ा 'चंदा'
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हुए जनाब में अब तक न मेरे हम गुस्ताख़
ख़ुदा के वास्ते हम से न हो सनम गुस्ताख़
छुपाया राज़-ए-मोहब्बत को दिल में पर हैहात
करे है नाम मेरा बद ये चश्म-ए-नम-गुस्ताख़
जो आवे जी में सो कह ले मैं हूँ वो ऐ प्यारे
रहूँ हज़ार हुज़ूरी में पर हूँ कम गुस्ताख़
कहा गले से लगा ले तू इल्तिफ़ात नहीं
कहे है तिस-पे मुझे क्यूँ तू दम-ब-दम गुस्ताख़
यही उम्मीद है ‘चंदा’ को ख़ूब-रूयों में
रखे हमेशा तेरा या अली करम गुस्ताख़