हुक़ूमतें बदल गईं उसी का यह कमाल है / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
हुक़ूमतें बदल गईं उसी का यह कमाल है
जो कल तलक जवाब था वो बन चुका सवाल है
बना हुआ है कुछ चतुर जनों का इक समूह-सा
ज़रूरतों को आज की रहा जो कल पे टाल है
निरीह लोग पक्षियों-से बस हैं फड़फड़ा रहे
बिछा हुआ शिकारियों का इस तरह का जाल है
न कर सके किसी की कोई अब यहां सहायता
हवा में ज़हर यूं घुला कि सांस तक मुहाल है
गली-गली सड़क-सड़क पे लाश है घिसट रही
है मांगता बदन कफ़न , कफ़न पे भी बवाल है
गले में चीख़ घुट गई लबों पे बात रुक गई
समझ नहीं ये आ रहा कि श्वास है या काल है
अदालतें वकालतें नुमाइशें लगें न क्यूं
जब आस्तीं में सांप ही रहा विधान पाल है
जहाँ निजी हितों का बोझ राजनीति ढो रही
'मधुर' वहाँ न देश का रहे ज़रा ख़याल है