हुण कैं थीं आप छपाईदा?
हुण कैं थीं आप छपाईदा?
मनसूर भी तैत्थे आया है।
तैं सूली पकड़ चढ़ाया है।
तैं खौफ न कीतो साईं दा।
हुण कैं थीं आप छपाईदा?
कहूँ शेख मसाइक<ref>‘शेख’ का बहुवचन</ref> होणा है,
कहूँ उदिआनी<ref>उजाड़-बीयाबान</ref> बैठा रोणा है।
तेरा अंत न कतहूँ पाईदा।
हुण कैं थीं आप छपाईदा?
बुल्ले नालों चुल्ला चंगा,
जिस ते ताम<ref>खाना</ref> पकाईदा।
रल फकीराँ मजलस कीती,
भोरा भोरा खाईदा।
हुण कैं थीं आप छपाईदा?
शब्दार्थ
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