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हुदूद-ए-शहर-ए-तिलिस्मात से नहीं निकला / सालिम सलीम

हुदूद-ए-शहर-ए-तिलिस्मात से नहीं निकला
मैं अपने दाइरा-ए-ज़ात से नहीं निकला।

अभी तो ख़ुद पे मिरा इख़्तियार बाक़ी है
अभी तो कुछ भी मिरे हाथ से नहीं निकला।

वो वक़्त बन के मिरे सामने रहा हर दिन
तमाम-उम्र मैं औक़ात से नहीं निकला।