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हुनकर स्वादक मादे.... / विभूति आनन्द

Kavita Kosh से
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हुनकर चेहरा पर आक्रोश नहि रहैत छनि
देह पर माटिक छिटका-कुन्नी तक नहि भेटत
ओ अद्भुत लोक छथि-
हुनका जखन-जखन
चिड़ै सभसँ खेलाएबाक सेहन्ता होइत छनि,
हुनका अंदर
चिड़ै सभक स्वास्थ्यक चिन्ता बढ़ि जाइत छनि
फेर तकर बाद
कतोक कतोक घटना जन्म लेब’ लगैत अछि

अहाँ देखब तँ हनुकर चेहरा पर
सदिखन चिंतनक सम्राज्य अभरत
अहाँ परखि नहि पाएब
हुनकर बुरका-रूपक मुसकीकें....
हुनकर तमतमाएल नासिकाग्रकें....
अहां भ्रममे छी-
ओ कतहुसँ व्यापारी नहि बुझएताह

हुनका संग कोनो तामझाम सेहा नहि देखब-
नहि तँ स्टॉक एक्सचेंजक मायालोक
नहि तँ विराट सामूहिकताक सुखक सपना
आ नहि तँ भयावह आ खतरनाक अभिनय

आ तँ हुनकर उपलब्धिक पोथा बनि गेल अछि-
जहिया चलल रहथि
तहिया चिड़ै सभक स्वास्थ्यक चिन्ता छलनि,
आब स्वयं अपन स्वास्थ्य पर भीड़ि गेल छबि

चिड़ै सभी मिथिलाक छी, आकि साइबेरियाक-
आब ओ एहि विषय पर नहि सोचैत छथि
हुनका मोनमे तँ रहैत छनि
एक खूंखार यायावर
जे चलैत अछि तँ रूकैत नहि अछि
यात्रा, स्वदेशसँ आरम्भ भ’ क’
सीमापार धरि यात्रे रहैत अछि
हुनकर संवेदनशील मोनमे चिड़ै
मात्र चिड़ै रहैत छनि

सभा सोसाइटीसँ घुरैत काल
हुनका एहि बातक चिन्ता कम्मे रहैत छनि
जे चिड़ै सभ मुइल कि, चिड़ै सभ जील
हुनकर महोत्सव चलैत रहए
हुनका एकरहि टा चिन्ता रहैत छनि
कारण, हुनकर जिह्वा तँ
कतोक-कतोक दशकसँ कसकस करैत छनि
परिष्कृत स्वाद सभसँ...
देशक शिरा सभ पर आसन जमौने
बैसल आ चलैत
कनैत आ सोचैत
अभिनयक विभिन्न प्रकार पर शोध करैत
एहन-एहन महापात्रकें देखेत आ चलैत-सोचैत
हम भयाक्रान्त छी हद्दे ! अहाँक ही हाल अछि ?
एकर कोपड़ भावकें परखैत
कोनो अधुनातन समीकरणक बाट तकैत
अपने अपने अंदरसँ लड़ि रहल अछि....
ई की भ’ रहल अछि !
के/कोम्हरसँ/किएक/द्वीप बनल
सृजन धारकें कोड़ि रहल अछि ?