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हुस्न-मरहूने-जोशे-बादः-ए-नाज़ / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Kavita Kosh से
हुस्न-मरहूने-जोशे-बादः-ए-नाज़<ref>शराब और सौन्दर्य की उमंग में डूबा हुआ</ref>
इश्क़ मिन्नतकशे-फ़ुसूने-नियाज़<ref>दर्शन के जादू का अभिलाषी</ref>
दिल का हर तार लरज़िशे-पैहम<ref>निरंतर कंपन</ref>
जाँ का हर रिश्तः वक़्फ़े-सोज़ो-गुदाज़<ref>जलन और नर्मी पर निछावर</ref>
सोज़िशे-दर्दे-दिल-किसे मालूम
कौन जाने किसी के इश्क़ का राज़
मेरी ख़ामोशियों में लरज़ाँ है
मेरे नालों की गुमशुदा आवाज़
हो चुका इ'श्क़ अब हवस ही सही
क्या करें फ़र्ज़ है अदा-ए-नमाज़
तू है और इक तग़ाफ़ुले-पैहम<ref>निरंतर उपेक्षा</ref>
मैं हूँ और इंतज़ारे-बेअंदाज़
ख़ौफ़े-नाकामी-ए-उमीद है 'फ़ैज़'
वरनः दिल तोड़ दे तिलिस्मे-मजाज़<ref>संसार का भ्रम, मायाजाल</ref>
शब्दार्थ
<references/>