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हुस्न ने सीखीं ग़रीब-आज़ारियाँ / 'हफ़ीज़' जालंधरी
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हुस्न ने सीखीं ग़रीब-आज़ारियाँ
इश्क़ की मजबूरियाँ लाचारियाँ
बह गया दिल हसरतों के ख़ून में
ले गईं बीमार को बीमारियाँ
सोच कर ग़म दीजिए ऐसा न हो
आप को करनी पड़ें ग़म-ख़्वारियाँ
दार के क़दमों में भी पहुँची न अक़्ल
इश्क़ ही के सर रहीं सरदारियाँ
इक तरफ़ जिंस-ए-वफ़ा क़ीमत-तबल
इक तरफ़ मैं और मिरी नादारियाँ
होते होते जान दूभर हो गई
बढ़ते बढ़ते बढ़ गईं बे-ज़ारियाँ
तुम ने दुनिया ही बदल डाली मिरी
अब तो रहने दो ये दुनिया-दारियाँ