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हुस्न माइल ब-सितम हो तो गज़ल होती है / 'नसीम' शाहजहांपुरी
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हुस्न माइल ब-सितम हो तो गज़ल होती है
इश्क बा-दीदा-ए-नम हो तो गज़ल होती है
फूल बरसाएँ के वो हँस के गिराएँ बिजली
कोई हो ख़ास करम हो तो ग़ज़ल होती है
कभी दुनिया हो कभी तुम कभी तकदीर खिलाफ़
रोज़ एक ताज़ा सितम हो तो गज़ल होती है
दामन-ए-जब़्त छुटे चूर हो या शीशा-ए-दिल
हादसा कोई अहम हो तो गज़ल होती है
शिकन-ए-गेसू-ए-दौराँ ही पे मौकूफ़ नहीं
उन की जुल्फ़ों में भी ख़म हो तो ग़जल होती है
चारा-गर लाख करें कोशिश-ए-दरमाँ लेकिन
दर्द उस पर भी न कम हो तो ग़जल होती है
राज़-ए-तख़लीक-ए-ग़ज़ल हम को है मालूम ‘नसीम’
जाम हो मय हो सनम हो तो ग़ज़ल होती है