भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हुस्न है तो अदा कहाँ जाये / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
हुस्न है तो अदा कहाँ जाये
इस बला से बचा कहाँ जाये।
तेरे तो लाख ठिकाने हैं मगर
तेरा आशिक बता कहाँ जाये।
तेरे बिन क्या वजू़द है मेरा
तेरे बिन फिर बसा कहाँ जाये।
तेरी आँखों से जो छलक उट्ठे
मेरी जाँ वो नशा कहाँ जाये।
पास में इस ग़रीब का भी है घर
मस्ज़िदों से ख़ुदा कहाँ जाये।
जितनी चाहे तू कोशिशें कर ले
ज़ुर्म करके छुपा कहाँ जाये।