भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हूं जाऊं रे जमुना पाणीडा / मीराबाई

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हूं जाऊं रे जमुना पाणीडा। एक पंथ दो काज सरे॥ध्रु०॥
जळ भरवुं बीजुं हरीने मळवुं। दुनियां मोटी दंभेरे॥१॥
अजाणपणमां कांइरे नव सुझ्यूं। जशोदाजी आगळ राड करे॥२॥
मोरली बजाडे बालो मोह उपजावे। तल वल मारो जीव फफडे॥३॥
वृंदावनमें मारगे जातां। जन्म जन्मनी प्रीत मळे॥४॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। भवसागरनो फेरो टळे॥५॥