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हूणियै रा होरठा (2) / हरीश भादानी
Kavita Kosh से
दिन में तो चैरा गुमै
हर गुमज्या अंधार
सै’र है क सृन्याड़
थूं कई जोवै हूणिया
जांरै हाथां मांडिया
सांस रंग्या चितराम
उगटयां उगटयां ले’र
चढ़या हाट जा हूणिया
आंख्यां खातर मांडिया
आंख्या सूं चितराम
एकलखोरी बाण
राख लीपगी हूणिया
खण-खण करतै तेल सूं
चलै गिस्त री रेल
छोडा आखर ले’र
बण्यौ डलेवर हूणिया
पांणी झुर-झुर सूकग्या
रेत -कंवळ रा नैण
देख्या सूना डैर
उग्या कोकरू हूणिया
बसकां सूं जूँणा भरी
जी निसखारा नांख
कद लेवैला एक
सांस नचीती हूणिया
मनवंतर तो नापिया
पगां पांयडौ बांध
कद लबैली सांस
एक बिंसाई हूणिया।
हूयौ गिस्टियो मानखौ
घस एडयां घस हाथ
कुण कीना ए डोळा
पूछै दानां हूणिया