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हूणियै रा होरठा (4) / हरीश भादानी
Kavita Kosh से
बटिया आलू प्याज रा
उड़ना तिरणा जाज
देखै चकरीबम्म
हवा खांवता हूणिया
खुरसी री चरभर रमै
खेवट पंगत जोड़
लोकराज री नाव
हवा भरोसे हूणिया
गूंगी खुरसी दावलै
सुरता बोली दीठ
बिना डोळ रो देख
मिनखाचारौ हूणिया
कळ पुरजा हाका करै
गोखै बयां हिसाब
फड़कै जद-जद होंठ
जडै़ किंवाड़ हूणिया
सोटयां खुभतां ही जगै
भाजै पहिया होय
फिरै थाकैलो लाद
थरकण नापै हूणिया
हाकम री हालै कलम
दिन रातींदो होय
लुळ-लुळ करै सलाम
रात तावड़ौ हूणिया
हाकम री आंख्या अजब
बांचै घोर अंधार
ताबड़ियै-सौ सांच
लगै फारसी हूणिया
छांट एक नांखै नहीं
बैठै मांडयां बूक
इंदर रा ए डाळ
देखै रेतड़ हूणिया