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हृदयेश्वरी / सरोज रंजन महांती / दिनेश कुमार माली

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रचनाकार: सरोज रंजन मोहंती (1942)

जन्मस्थान: नागणपुर, कटक

कविता संग्रह: कागज डंगार शोक (1977), बैंगनी ऋतु(1981), फूल फुटाइबा मना(1992)


मैं जानता हूँ, जानता हूँ, रे चतुरिका
तुम्हारे शब्दकोष में नहीं है
मेरे लिए प्रेम का शब्द।
खोजने पर वह मिलेगा कहाँ ?
मेरे स्नेह की शिवगंगा
तुम्हारे निष्ठुर ‘नहीं नहीं’ बातों की
तपती धूप से मुरझाना और
जमीन पर लिटाना
तब भी तुम खुश मन से
राज- राजेश्वरी की तरह धीरे-धीरे
तुम्हारे निर्मम पांव चलते जाते हैं
दुख समझती हो ?

तुम तो स्नेह और प्रीति को
विचार, बुद्धि और तर्क की प्रज्ञा से
समझने का करती हो प्रयास
जहाँ मेरी प्रीति और विश्वास का जहाज
हिलने-डुलने लगता है बीच समुद्र में
तुम्हारी निरापद खुशी और विलासी हंसी के
धक्के से।
मेरे लिए तुम्हारे हृदय के बगीचे में
अजस्र-स्नेह का फूल खिलता देख
तुम्हारे गद्य जैसी शुष्क कहानी पर
कैसे विश्वास करूंगा मैं, रे हृदयेश्वरी  !
यद्यपि उस फूल को
तोड़ना तो दूर की बात, छूना भी मना।

मैं जानता हूँ, जानता हूँ, रे चतुरी !
तुम्हारे स्नेह के कई व्याकरण सूत्र
प्रीति के उल्लास से भरे तुम्हारे मन के भाव को व्याहत कर
तुम्हारे सामने व्यक्त न कर पाने की यंत्रणा
और अव्यक्त भाव छोड़कर
तुम्हारी सारी व्यक्त भाषा
मुझे देती है तुम्हें न समझ पाने की वेदना।

तुम्हारे भाषाकोष में ‘प्रेम’ या उसके
प्रत्येक शब्द को तुम निर्वासित दंड से दंडित कर
जगह से जाने का आदेश देती हो, मगर
सजाकर रखता हूँ मैं केवल ‘यंत्रणा’ ‘ज्वलन’
की तरह बहुत सारे शब्द आक्रांत करने को दूसरों की चेतना
उनके होठों से केवल
‘पाप’ या उससे संबंधित खूब सारे
अंतहीन शब्दों की दीर्घ शोभायात्रा।

पाप क्या, पुण्य क्या
स्वर्ग क्या, नरक क्या
मैं नहीं जानता हूँ बिल्कुल , रे हृदयेश्वरी
मैं तो केवल जानता हूँ
प्रेम मेरे लिए चांदनी रात
पाप झूठा, पुण्य झूठा
स्वर्ग नरक सभी झूठे
सत्य केवल धरती और उसकी मिट्टी के
फूलों की खुशबू
यहाँ बहुत मान-अभिमान
राग-द्वेष, रोष-दोष से गलत समझा वास्तव में
जीवन का एक नित्य रास या
उसका एक संक्षिप्त भग्नांश।

पाप नहीं
प्रीति
उसके
पुण्य गंगा की जागृति।

शरीर अगर पाप है, रे हृदयेश्वरी
प्रेम की बारिश के लिए
बादलों में रूपांतरित कर देता है उसको
कामना के हिमाद्रि मस्तक को छूकर आते
वे बादल तुम्हारे मन की गंगाधार बनकर
धो देते हैं
सारे पाप, सारे अपराध और
तुम बन जाओगी
मेरे मन-मंदिर की जीती-जागती देवी।