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हृदय मिलते नहीं है / प्रेमलता त्रिपाठी

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प्रेम झूठा हो हृदय मिलते नहीं है।
आपसी मतभेद भी छिपते नहीं हैं।

राह सच होती कठिन है मानते हम,
सत्पथी हों तो डिगा सकते नहीं हैं।

डूबती नौका तरेगी सच सहारे,
हो विवश हम पथ सही चुनते नहीं हैं।

आद्य मंत्रों के सदा ज्ञाता रहे हम
जान लेते मर्म फिर रुकते नहीं है।

है चुनौती आज शिक्षा की हमारी,
ज्ञान पाये यदि शिखर बिकते नहीं हैं।

हिंद के जागें युवा साहस बढ़ायें,
देश हित क्यों स्वार्थ को तजते नहीं हैं।

लिख सकें यदि प्रेम करुणा की कहानी,
हो सुखद सम भाव पर लिखते नहीं हैं।