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हृदय राग का सागर / रामइकबाल सिंह 'राकेश'
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हृदयराग का सागर
उमड़ पड़ा मकरन्द-गन्ध से मादन।
चित्रकानना प्रकृति सहज उत्फुल्लित,
बरसाती वारुणी प्राण से प्लावित,
उड़ा गन्धवह रहा कुसुम का केसर।
छन्द मालिनी में मुखरित नव यौवन,
देकर तरु-निकुंज को ग्रीवालिंगन,
अँगड़ाई लेता धरती पर अम्बर।
सहस्रांशु के कनकबिम्ब से चित्रित,
अन्तरिक्ष के नाभिवलय में दीपित,
लहराता सौन्दर्य ज्योति का भास्वरं