हॅकिंग हो गई है साहब / तुषार धवल
यहाँ चालाक सजदों की दुआ क़ुबूल होती है I
०००
मेंहंदी के नरम पत्तों पर शबनम की बूँदों से हमने कुछ लिखा था
किसी के लिए
इबारतों के अन्जाम लेकिन बदल गए हैं
मोम अर्थों के पिघल नहीं पाते
हल नहीं हो पाते
समय, मृत्यु और नश्वरता से जूझते
हमारे निश्चय, कल्पना और विश्वास
उनकी सीमा बदल गई है दृष्टि और दर्शन भी !
सहन सुखन
संयम संगम
के कोड बदल गए हैं
कन्फ्यूज़न है I
हॅकिंग हो गई है साहब !
69 की मुद्रा में सत्ता और सामर्थ्य
निजता का शिखण्डी दर्शन
भीष्म की आदिम छाती की तरफ बढ़ रहा है अपने अर्जुनों के साथ
और खलबली है माहौल में
उसकी पूर्वसूचना में किसी दूसरी धरती से प्रक्षेपित बाण यहाँ बरसने लगे हैं
और आकाश रंग बदलने लगा है पहाड़ ढह रहे हैं
जंगल गायब जंगलीपन जायज़
विश्वबोध उलझा हुआ
ये धूल के कण अब अनगिनत चिमनियाँ हैं
किसकी भूखी रोई जली आँख कब पथरा गई
फ़र्क नहीं पड़ता हमको
कोई नया टेक्स्ट कोड है साहब !
जो उपभोग के यूज़र फ्रेंडली सॉफ्टवेयर में हिडन होता है
और यह वाइरस प्रायः हमारी आँखों के रास्ते हममें घुसता है
वैसा ही कुछ हुआ है साहब !
अपने महाद्वीपों के अवशेष हैं हम लघुद्वीप खारे
जीवन लघोत्तर
माइक्रोचिप में
होने का विस्तार क़ैद
इसी में नया विस्तार भी
क़ैद यहाँ सब कुछ सीमित दायरों में
कवि भी कल्पना भी
आस्थाओं का लोक तंत्र सड़ा हुआ पानी है जिसमें
जमे हुए खून के चकत्ते हैं
और यह हॅकिंग सदियों पहले हुई थी
मौन की गहराई कैसे नापेगी यह प्रणाली विक्षेप ही जिसका भ्रूण है !
अकेला है जन्म
अकेला सृजन
अकेला भोगी निजता का सेनानी
सुभाष भगत
आज़ाद
अपने निज में
एक मोमबत्ती जुलूस टी० वी० पर छा कर वफ़ात पाता हुआ
निजता का प्रतिलोम भी निजी श्लाघा ही है साहब !
नग्नता का एकांतिक दोहन करता आभासी विश्व मगन है
और समूह की ध्वंस चिताओं की राख उड़ रही है
बंधनों से मुक्त चारागाहों में
जहाँ पशुता का श्लाघ-काम निर्वसन करता है कुण्ठाचारों को
निर्मनुष्य कर दो आत्म को
वह असन्तुष्ट बन जाएगा हमेशा के लिए
असन्तोष साध्य है जिस प्रणाली का वही बाज़ार है साहब असुरक्षाओं का
भय के उद्योगों का
लोभ के महा कुम्भ में
मेरी भूख आपकी भूख से ज़्यादा अर्थपूर्ण है
आपका क्या हुआ यह सोचना समय की बर्बादी
मैं इस हिडेन टेक्स्ट को पढ़ सकता हूँ साहब
पर मेरे पास कोई एल्गोरिदम, कोई सॉफ्ट्वेयर नहीं है
कुछ कीजिए साहब !
हैकिंग हो गई है !!
गुलदस्तों का वजूद उनकी ख़ुशबू तक ही
फूलों के गाल क्यों झुलस गए, लफ़्फ़ाज़ी है
‘हैपनिंग ’ नहीं हैं मानवता के प्रश्न... these are fading rumbles of a bygone era… ! हाँ साहब ! इण्टेलिजेंट रोबोट्स की आबादियों का कोई नियोजन नहीं है योजना आयोग की फ़ाइलों में
मानव संसाधन मन्त्रालय भी बेज़ार बेख़ौफ़ है
बुद्धि का प्रबन्धन कौन करे ?
वह जो है, वही सच है ?
वह जो दीखता है, वही सच है ?
यह जो टूटा है
इसे आज ही पिघलना था
जिसे हमने नकार दिया
यह वही था जो अपने सिर पर हमारी आग झेलता था
ऐसी कितनी ही चीज़ें
ध्वस्त हो रही हैं और
हमें पता भी नहीं !
यह चुपचाप चलता हुआ षड्यन्त्र है
मुगालते का हिडन टेक्स्ट
साहब! कुछ कीजिये !!
सच क्या ‘है’
इस पर कोई FAQ नहीं है साहब
होगा भी तो जो मुनाफ़ामन्द हो वही होगा !!
मुनाफ़ा सिर गिनता है
ईश्वर का सिर भी धर्मानिरपेक्ष राजनीति में हर क़ौम क़ाफ़िर है
चालाक सज़दों की दुआ क़ुबूल करती हुई
बचे हुए धड़ों का क्या करें साहब ?
ये अन्न माँगते हैं वजूद माँगते हैं
जो सच का बिगुल बजा रहा है
उसे हमने बरी नहीं किया है अभी
कैसे भरोसा करें उसी की भाषा पर ?
हॅकिंग हो गई है साहब
कुछ कीजिए