भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हेत री हांती / सांवर दइया
Kavita Kosh से
सुण रे व्हाला भाई !
बां री तो मनस्या है आ ई
कै चौफेर चालै चौईसूं घंटा
बैर – नफरत
अर ईसकै री आंधी
पण आपां नै
मिनख री मुगती खातर
लड़ण नै टुरियां हां
तो लै आव
आपां बांटां घर-घर
हेत री हांती ।