हेन्हैं केॅ किरियैलोॅ आठो याम काटै छी / अमरेन्द्र
हेन्हैं केॅ किरियैलोॅ आठो याम काटै छी
नोनछोहोॅ जिनगी रोॅ खारचोॅ दुख चाटै छी।
जागै सब अनटेटलोॅ असगुन अलेरोॅ
पाँच बहिन विषहरी केॅ पड़लोॅ छै फेरोॅ
सपना अपैतोॅ सब कूटै अहूरिया
बीहै दिन राँढ़ भेली किछा बहुरिया
असनैलोॅ रिश्ता छै भावो सबटा विषैन
जेठोॅ के परती-पराँटोॅ रँ फाटै छी।
अन-धन जे कल्हो तांय रखलौं अगोरी केॅ
अलगट्टे राखी कोय गेलै भमोरी केॅ
अदलाहा उमरी के साँसो अखम्मर
बेमत होय रौने लेॅ देलेॅ छै आँतर
खखरी-ही-खखरी सब भूसोॅ-ही-भूसोॅ
कोठी सेँ लैकेॅ जों अछरा केॅ छाँटै छी।
चाँदोॅ मेँ सूर्य बरै, सुरजोॅ पर कारिख
भादोॅ के उम्मस सेँ धरती छै उखविख
अबढंगॉे आशोॅ के अगते अगोरोॅ मेँ
बीतै छै कलेॅ-कलेॅ औरदा ठो लोरोॅ मेँ
होनी तेॅ होनै छै होइये के रहतै
कथी लेॅ फेनू ई अरगासन बाँटै छी।