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हेमंत ऋतु रो रात / मुकेश कुमार यादव
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हेमंत ऋतु रो रात।
ठहाका इंजोरिया चाँदनी रात।
ऐंगना में बैठी निहारै छी चांन।
पियवा में बसै छै हमरो प्राण।
रही-रही याद आवै मिलन वाली बात।
बदन सिहरी उठै, तन-मन जरी उठै।
बैरन पवन उठै, सर-सर बही उठै।
अचरा उड़ी गेलै हटात।
हेमंत ऋतु रो रात।
पिया के संदेश लेले, ऐलै शीतलहरी घर।
जेकरा के बिना जग लागै छै अन्हारिया।
केकरा के कहबै दिल के बात।
आँखियाँ में नींदो नञ् छै।
रातभर चैनो नञ् छै।
असरा में भेलै भिनसार।
देखी के सरंग मन, उठै छै तरंग रंग।
झिलमिल-झिलमिल करै हमरो आस।
लागै केकरो जाय छै बरियात।
पूरब दिशा से ऐलै, एक रे बटोहिया।
केकरा के कहै छै संदेश।
केकरो दिल के बात।
हेमंत ऋतु रो रात।