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हेमंत सोहर गाबै छै / अनिल कुमार झा
Kavita Kosh से
धानोॅ के सीसोॅ बहियारी में रून झुन बाजै छै,
अरे हं, लागै हवा संग हेमंत सोहर गाबै छै।
सब सीसोॅ पकी-पकी झुकी झुकी सोनोॅ रं दमकै छै,
अरे हं, आरी पर बैठी किसानोॅ मनेॅ मन मुस्कै छै।
दूर से कोय बोलाबै जोरोॅ से हँकाबै गाबै हे,
अरे हं, सौंसे दिगारोॅ के हेमंत हुलसी सजाबै हे।
बछिया दुआरी पर जोरली हुमकी के ठुमकै छै,
अरे हं, गारा के घंटी टनाटन टन-टन टुनकै छै।
अबकी बरस होतै धान जमी के किसाने परब मनैतै हे,
अरे हं, सबसें मिली जुली हंसी ख़ुशी सबके खिलैतै हे।
अहिने बितलै हेमंत गुण गुणवंत सबके सोहाबै से,
अरे हं, बरसे बरस आबै घूरी के बूली के हँसने हँसाबै हे।