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हेर रहे हम / शिरीष कुमार मौर्य
Kavita Kosh से
अरे पहाड़ी रस्ते
कल वो भी थी संग तिरे
हम उसके साथ-साथ चलते थे
उसकी वह चाल बावली-सी
बच्चों-सी पगथलियाँ
ख़ुद वो बच्ची-सी
उसकी वह ख़ुशियाँ
बहुत नहीं माँगा था उसने
अब हेर रहे हम पथ का साथी
आया
आकर चला गया
क्यों चला गया
उसके जाने में क्या मजबूरी थी
मैं सब कुछ अनुभव कर पाता हूँ
कभी खीझ कर पाँव ज़ोर से रख दूँ तुझ पर
मत बुरा मानना साथी
अब हम दो ही हैं
मारी लँगड़ी गए साल जब तूने मुझे गिराया था
मैंने भी हँसकर सहलाया था
घाव
पड़ा रहा था बिस्तर पर
तू याद बहुत आया था
मगर लगी जो चोट
बहुत भीतर
तेरा-मेरा जीवन रहते तक टीसेगी
क्या वो लौटेगी
चल एक बार तू - मैं मिलकर पूछें
उससे
अरी बावरी
क्या तूने फिर से ख़ुद को जोड़ लिया
क्या तू फिर से टूटेगी