हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
हे कपड़े तों क्यूं ना धुआए मेरा ए बाबा
हे कपड़े तो न्यूं ना धुआए मेरा बाबल
पाणी के भरे हैं तलाब जी
धोए धुआए री लाड्डो धरे री बिलंगणी
लाग रही तेरै ब्याह की
म्हारे तो कपड़े री लाड्डो उस दिन ऊजले
जिस दिन तुम रै साजन घर जाओ जी