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हे कृष्ण बँसुरिया वाले तुम पर लाखों परनाम / महेन्द्र मिश्र

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हे कृष्ण बँसुरिया वाले तुम पर लाखों परनाम।
मोर मुकुट मकरा कृत कुंडल चमके भानु समान।
घुंघुरवाली बाल सोहावन सुन्दर मृदु मुसकान।। तुम पर।।
श्याम गात सरसीरूह लोचन मुख में सोहे पान।
छवि दिखला जा गले लगा जा मेरो जीवन प्रान।। तुम पर।।
घर घर की दही माखन खाई माँगत साँझ बिहान।
तीन टके की कमरी ओढ़ैया तापर चले उतान।। तुम पर।।
कंस मारि विध्वंस किए हो जाने सकल जहान।
भूमि भार सब टार दिए हो बच गए संत सुजान।। तुम पर।।
दीन दयालु दया कर मो पर विनवों बारम्बार।
मेरे मन मन्दिर बसि जइहो यही तुम्हारे धाम।। तुम पर।।
द्विज महेन्द्र श्री कृष्णचन्द्र जी साँची कहो जुबान।
कब लों दरस दिखैहों मोहन झूठ कहन की बान।। तुम पर।।