भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हे गे माय / मधुसूदन साहा
Kavita Kosh से
हे गे माय, दिहें बताय
साँप कैन्हंे बेंगे खाय?
कैन्हें तारा टूटै छै
अंकुर कैन्हें फूटै छै
कैन्हें कटलोॅ गुड्डी केॅ
छौड़ासिनी लूटै छै
कैन्हें पकड़ी केॅ मूसा
बिल्ली आपनोॅ संग लै जाय?
कैन्हें कौआ ‘काँव’ करै
बरगद कैन्हें छाँव करै
कैन्हें सोची-समझी केॅ
ज्ञानी आपनोॅ पाँव घरै
कैन्हें हड़ियल बैलोॅ केॅ
बाबू जोतै लेॅ लै जाय?
”बेटा पढ़लोॅ-लिखलोॅ कर
मोॅन लगाय केॅ सिखलोॅ कर
आपनोॅ कामोॅ में हरदम
सबसें आगू दिखलोॅ कर
समझी जैभैं अपने आप
देतोॅ सब कुछ समय बताय“।