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हे डोला हे डोला, हे डोला, हे डोला /खड़ी बोली

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   ♦   रचनाकार: गुलज़ार

हे डोला हे डोला, हे डोला, हे डोला

हे आघे बाघे रास्तों से कान्धे लिये जाते हैं राजा महाराजाओं का डोला,

हे डोला, हे डोला, हे डोला

हे देहा जलाइके, पसीना बहाइके दौड़ाते हैं डोला

हे डोला, हे डोला, हे डोला


हे हैय्या ना हैय्या ना हैय्या ना हैय्या

हे हैय्या ना हैय्या ना हैय्या ना हैय्या

पालकी से लहराता, गालों को सहलाता

रेशम का हल्का पीला सा

किरणों की झिलमिल में

बरमा के मखमल में

आसन विराजा हो राजा


कैसन गुजरा एक साल गुजरा

देखा नहीं तन पे धागा

नंगे हैं पाँव पर धूप और छांव पर

दौड़ाते हैं डोला, हे डोला हे डोला हे डोला

सदियों से घूमते हैं

पालकी हिलोड़े पे है

देह मेरा गिरा ओ गिरा ओ गिरा

जागो जागो देखो कभी मोरे धन वाले राजा

कौड़ियों के दाम कोई मारा हे मारा


चोटियाँ पहाड़ की, सामने हैं अपने

पाँव मिला लो कहारों...

कान्धे से जो फिसला ह नीचे जा गिरेगा

ह राजाओं का आसन न्यारा

नीचे जो गिरेगा डोला

हे राजा महाराजाओ का डोला

हे डोला हे डोला हे डोला हे डोला......