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हे तात / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

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विलखि रहल छी अन्हर जाल मे
छोड़ि कत चलि गेलहुँ तात?
कॉपि रहल छथि सूर्यमुखी आ
कुहरथि वृद्ध कनैलक पात
टोलक सभटा नेना भुटका
आश लगौने घूमथि वथान
के देत उदयन धामक पेड़ा,
के देत मिठगर मगही पान
पंडित बाबा खाट पकड़लनि,
ककरा मुख सँ सुनता गान
श्यामजी अश्रु इनार मे पैसलनि
आव के कहतनि पैघ अकान?
आर्या माँक दुआरि सुन्न अछि,
सत्संगी सभ ओलती मे ठाढ़
भक्ति सागरक धार विलोकित,
लुप्त गगन मे अहँक कहार
अनसोहाँत ई दैवक लीला,
कोना वनौलनि मर्त्य भुवन?
विज्ञानक ऑगन सँ बाहर,
जन्म मरण जीवन दर्शन
करतीह कोना श्रृंगार मेनका,
करतनि के रूपक वर्णन
देवराज छथि कोप भवन मे
जल विनु करव कोना तर्पण?
मुख मलीन कहियो नहि देखलहुँ,
सुख दुख सँ अहाँ विलग विदेह
अंतिम भीख मॅगै छी बाबू,
दर्शन दिऔ एक वेरि सदेह