हे तुलसी ! एकटा बात सुनू / नरेश कुमार विकल
हे तुलसी ! एकटा बात सुनू
कने चूक अहाँ कयलहुँ
शत् चारि सय पहिने भेलहुँ
जँ एखन अहाँ रहितहुँ
हम एकटा ई गप्प कहितहुँ
एक मोटर साइकिल शीघ्र कीनू।
छथि राम मनोज हेयर रखने
दूहू हाथ जाम बीयर रखने
ड्रेन-पाइप सँ भरल टांग
छथिं क्रीचक केयर रखने
मुनलहुँ अछि किए आँखि दूनू।
देखू आइ अपन सीता कें
विश्व सुन्दरी रीता कें
छथि भरत फिल्म एक्टर बनल
बन्हने कण्ठ में फीता कें
जँ काव्य लिखब तँ फिल्म चलू।
बॉब्ड छँटल छन्हि हिनक केश
छन्हि चुस्त तंग सँ भरत भेष
ओ घुमि रहल छथि देश-देश
उज्जर चूना सँ पोतल फेस
अपन सीता कें अहाँ चीन्हू।
कैकेयी पहुँचाबथि बेड टी
पुछथि कौश्ल्या कतेक की
दौड़लीह सुमित्रा बजैत जी
बजलीह दशरथ सँ सीता जी
जे फिल्म फेयर एकटा अहाँ कीनू।
सीता चललीह अछि घुमऽ गाम
लक्ष्मण कें पाछाँ छथि राम
देखऽ चललनि अछि फिल्म धाम
चलि रहल शराब सँ भरल जाम
छथि बॉक्स मे बैसल तीनू।
छन्हि सींथ मे सिन्दुर नहि
हम घोघ किऐ काढ़ब आइ
रखैत छथि आँचर हरजाई
जे कहाबथि लौंगी मरचाई
पति छथि विदेश किए कानू ?
हे तुलसीदास ! अहाँ फेर आउ
आमलेट-डोसा कें लिअऽ खाउ
एहि राम-सीता कें खूब गाउ
हनुमानो जी कें नेने आउ
एक महाकाव्य अहाँ फेर लिखू।