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हे नागौरण / राजूराम बिजारणियां
Kavita Kosh से
‘‘हे नागौरण
नाड़ा तोड़ण
बळद मरावण
थूं क्यूं चाली आधै सावण.?’’
मूंडै पसरी
बगत रै बिखै रो परमाण
बूढी लिकारयां..
खुंखावती
खरणावती
धूड़ उडावती
आंधी सूं
स्यात करै ओ सुवाल.!
सुवाल आंधी रो नीं
सुवाल.!
रेत रो
खेत रो
धोरै बूरयो धन अंवेरण रो।
धन..?
खेत रै सूंडै रमी रेत
रेत...!
जिण रै रूं-रूं
पुरखां री देही रो परस
बंधावै धीज
देवै हौसळो
जिण पाण
घूमूं देही में
पाळतो प्रीत
परोटूं रीत।