हे निर्भगी / वीरेंद्र पंवार
हे निर्भगी,
तु कन गीत छै मिसाणी,
जौं गीतुंन बिन्सिरी नि देखी,
जौन सियां गोरु तका अर्यां मोर नि उगर्याँ,
जौं नि सारि उकाळयूँक पाणी ,
पंदेर्यु कि बाच बि नि बनानी जू ,
दथ्युं का छुणका बि नि बिंगणि जौं ,
प ळयेंरूं तक नि पछ्याणी ,
नि बींगी घसेन्यु का खुदेड़ गीत ,
बाजूबंद कि रस्याँ ,
नि पछ्याणी थड्या चौंफला का झुमैलो ,
बार त्यौवार कौथिगु का मेला ,
जौन नि बरती चर्कड़ी कादैं ,
हाथ - खुट्यू कि बारामासी तिड्वाल
जौन नि देखि सर्गे आसमा तपत्यंदी सांकि ,
दबद्यंदी आंखी, नि बींगी गोरु बछरू कि भोण ,
जौन माँ - बैणयूँ की पीड़ा बी नि बींगी ,
खुद म़ा लगदी बादुकी पराज नि सुवांदी जौं ,
तु धारू -धारू गीत गाणी छै ,
अर ल्वे का आंसु बोगाणी ब्वे ,
ल़ाटा ऐंची-ऐंच बुखु सी नि उड़ ,धर्तिम बी हेर ,
वख देख हपार ,कों चुलंख्युं म़ा पोंचिगै सूरज ,
छौंप सकदी त छौंप वैकि निवती तैं ,
ठेट समोदर कि जळद्यूं म़ा सेल़ेगे जौन ,
कर सकदी त महसूस कर वीं सेळी तै ,
काचा झ्याड़ों म़ा सुद्दी न कर स्याणी ,
इन हाल म़ा न हो एक दिन ,तेरवी छैल ,
पुछू त्वे सि - ल़ाटा तु कन गीत छें मिसाणी ।