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हे प्रणय के देवता तुम हो समाहित श्वास में / रिंकी सिंह 'साहिबा'

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हे प्रणय के देवता तुम हो समाहित श्वास में,
तुम हृदय की वेदना में तुम सुखद आभास में,
हे प्रणय के देवता तुम हो समाहित श्वास में ।

जुड़ गया अनुबंध तुमसे धन्य ये जीवन हुआ,
भाव की यमुना बही निर्मल ये अंर्तमन हुआ,
आस हर सिंचित है तुम से तुम ही हो विश्वास में,
हे प्रणय के देवता तुम हो समाहित श्वास में।

तुमने मेरी आत्मा को कर दिया उज्ज्वल सखे,
प्राण में आकाश गंगा की उठी कल- कल सखे,
तुम बसे धड़कनों के हर मधुर उच्छ्वास में,
हे प्रणय के देवता तुम हो समाहित श्वास में।

मैं हूँ इक तपती धरा और तुम बरसते मेह हो,
मैं अधूरी चेतना हूँ , तुम असीमित स्नेह हो,
श्रावणी बूंदों में तुम हो , तुम ही हो मधुमास में ,
हे प्रणय के देवता तुम हो समाहित श्वास में।