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हे प्रभु, इहाँ हम खाली तहार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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हे प्रभु,
इहाँ हम
खाली तहार गीत गावे खातिर
विलमत बानीं
खाली तहार गीत गावे खातिर
आइल बानीं।।
अपना एह संसार-सभ में
हमरो के गावे द,
एकरा खातिर
हमरो के एगो जगे द।
अपना सृष्टि सभा में
हमरा के बस
गावत रहे के हुकुम दे द।
हे प्रभु
तहरा एह संसार में
दोसर कवनो काम लाएक
हम नइखीं।
हमार निकम्मा प्राण
खाली तहार गीत गावे में माहिर बा
खाली तहार गीत के स्वर साध सकेला।
आधा रात के
सुनसान बेरा में
जब मंदिर में
तहार आरती होखे लागे
तब हो प्रभु
हमरा के गावे के हुकुम द।
भोरे-भोरे
जब उषा सुंदरी
सोनहुला वीणा के तार पर
स्वर साधे लागे
तब तहरा दरबार में
हे प्रभु
हमहूँ गीत गा सकीं
इहे भीख द,
इहे मान द,
अपना एह संसार-सभ में
हमरो के गावे के
आपन गीत सुनावे के
सम्मान हमरा के द।